दहलीज़
ख़्वाहिश में जिसकी दुनिया से उम्र भर लड़े हैं , अब भी उसी को पाने की ज़िद पे हम […]
ख़्वाहिश में जिसकी दुनिया से उम्र भर लड़े हैं , अब भी उसी को पाने की ज़िद पे हम […]
कितना तक़्दीर का मारा हूॅं ; सच ! बिचारा हूॅं ? जिसकी लज़्ज़त का न सानी जहान में होगा […]
वहाॅं पर लेटकर हमने बहुत आराम फ़रमाया , जहाॅं तशरीफ़ रखना भी लगे दुश्वार लोगों को ।। बहुत ही […]
लतीफ़े सुन रहा था और हॅंस-हॅंसकर परेशाॅं था , यक़ायक़ याद वो आया कि रोये-रोये चल बैठा ।। अमा […]
जिस्म मेरा , मेरा दिल और रूह भी मेरी चले , तुझ तलक बिन पैर के ही और बिन […]
जीने की ख़ातिर रोज़ मरूॅं – मैं कितनी बार , मगर मुझको , महबूब क़सम अच्छा लगता , जीना […]
रात दिन सोचूॅं कि आख़िर कब हुआ और क्या हुआ ? मेरी बर्बादी का सुन किस्सा वो क्यों उट्ठा […]
वो सुनाई दे गया कानों को उस सुनसान में , जग का सन्नाटा भी मुझको शोर अब लगना अरे […]
तेरे कहने से दिन को दिन नहीं मैं रात कहता हूॅं ।। तू ख़ुश हो इसलिए तो ग़मज़दा होकर […]
राह मेरी रही पग-पग , कंटकाकीर्ण-पथरीली ; और सीधी नहीं डग-डग , छोर तक घोर सर्पीली ।। मैं चला […]